इसके लिए हम आपको एक कहानी सुनाना चाहते हैं।
बहुत समय पहले की बात है। भारत के दक्षिण में एक गांव है जिसका नाम है उद्दीन। इस गांव के चारों ओर घने जंगल तथा बीच में एक नदियां बहती है। नदियों भी ऐसी है कि मानो साल में 4 महीने से पानी बहती है। नदी के चारों और लंबे लंबे प्रेत की कहानियां इस प्रकार करते हो मानो कोई असुर किसी को अपनी और आकर्षित करके खाने की कोशिश कर रही हो। इस जंगल के बीच में पाई की ओर लगभग लगभग 200 फुट ऊंची एक पर्वत है जो उत्तर की ओर 1 गांव पंचकूला को होते हुए उत्तर तक फैली हुई है। पंचकूला का ऐतिहासिक महत्व है कि वहां पर बरसों पुराना आदिमानव कि कुछ अवशेषों का मिलना। कई पुराने व्यक्ति में संतों का कहना है कि पंचकूला में मैं बहुत पहले दो कुआं हुआ करता था जिसमें वहां के रहने वाले लोगों को मरने से पहले तथा मरने के बाद नहलाया जाता था। जिससे उसे अच्छे जीवन की प्राप्ति हो तथा इस जन्म में किए गए पाप पाप का प्रायश्चित हो सके। हमें लगता है कि शायद पंचकूला का महत्व इस पापनाशी को से भी और बढ सकता है।
एक और कहानी सामने आता है कहा जाता है कि पंचकूला के पूरब की ओर और एक बहुत बड़ा उठा था जिसमें रामायण काल के समय महर्षि अंबिका का एक कुटिया थी जो बहुत समय तक भगवान राम की तपस्या किया। उस समय दक्षिण का राजा शायद….. हुआ करता था। कहा जाता है कि टोटाअंबिका भगवान शिव के प्रति इतने भक्त आए थे कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने बनाएं इच्छा मृत्यु एवं पाप नाशक का वरदान दे दिया। शायद इसी कारण पंचकूला का कुआं पाप नाशक बन सका।
अब हम अपने कहानी पर लौटते हैं। हमारा महत्वपूर्ण बिंदु था उद्दीन गांव……..
उद्दीन गांव में बहुत पुराना एक सरकारी स्कूल था जिसमें उस गांव के बच्चे करते थे। इस विद्यालय में शिवली नाम का एक लड़का पढ़ता था। जो पढ़ने में बहुत अच्छा था। वह लड़का स्कूल में होने वाले सभी प्रतियोगिता मे अच्छा प्रदर्शन करता था । तथा वर्ग में भी प्रथम आता था। उसका पिता आसवन दामोद था। जो पेशे से मछुआरा तथा नाविक था। कभी-कभी शिवली भी पिता के साथ मछली पकड़ने जाया करता था। उसे पिता की मदद करने में बहुत खुशी मिलती थी। पर उसके पिता उसे साथ नहीं लाने पिलाते थे और उसे स्कूल जाने के लिए प्रेरित करते थे।शिवली पिता का बात हमेशा मानता था। और रोज स्कूल जाता
उसके बगल वाले का पंचकूला के भी बच्चे स्कूल आया करते थे । उसी बच्चों में से एक बच्ची भी आया करते थे जिसका नाम जयंती थी जयंती सुंदर एवं सुशील तथा मेहनती लड़की थी। सुबह बे अपने मां के साथ लकड़ियां लाती एवं खाना बनाकर स्कूल आया करते थी। वह अपने घर में दो भाई के बाद एकलौती बहन थी। लगभग जयंती का उम्र 13 वर्ष की होगी पढ़ने में इतनी अच्छी तो नहीं थी परंतु हिंदी पढ लेते थे उसे विज्ञान गणित विषयों में परेशानी होती थी।
1 दिन की बात है जयंती लंच टाइम पर खाना खाकर कुए पर अपना बर्तन धो रही थी। तभी उसका बर्तन नीचे नाले में चला जाता है । बर्तन नाले में जाने से वह डर जाती है सोचती है कि घर जाऊंगी तो मां बर्तन के बारे में पूछेगी तो मुझे मार पड़ेगी यह सोचकर वह रोने लगती है।तभी वहां पर शिवली खाना खाकर अपना बर्तन धोने आया। उसने जयंती को रोते देख पुछा क्यो रो रही है?
जयंती ने कहा मेरा बर्तन नाले मे चल गया है ।ऊ ऊ करती हुई वोली ।
शिवली ने कहा इसमे रोने की क्या बात है मे अभी निकाल देता हुॅ।बोलकर निकलने लगा । आगे की कहानी के लिए द्वारा विजिट करें