भारत की विदेश नीति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की शुरुआत इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना के फल स्वरुप प्रारंभ हुआ। विदेशी नीति के प्रश्नों की रूचि का प्रदर्शन अट्ठारह सौ पचासी में कांग्रेस के स्थापना के फलस्वरूप जवाहरलाल नेहरू के द्वारा शुरू किया गया। जब भारत 1947 में आजाद हुआ तो यहीं से भारत में विदेश नीति का आधार की भूमिका का कारण भी बढ़ने लगा। उस समय भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में जवाहरलाल नेहरू थे । 1947 के बाद विश्व के मामलों में कांग्रेस की तरफ से अधिकतम दृष्टिकोण की रूपरेखा बनाने में पंडित जवाहरलाल नेहरू का ही हाथ था।
विदेश नीति में भारत के चिंतकों का क्या योगदान रहा ……..
भारत के चिंतकों में सर्वप्रथम विदेश नीति में नाम आता है महात्मा गांधी जिन्होंने 1907 से 1914 तक दक्षिण अफ्रीका में पहला आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया यहां से ही यहां से भारत में विदेश नीति का उद्घाटन हुआ।
दूसरे चिंतकों के रूप में भारत से रविंद्र नाथ टैगोर राजा राममोहन राय तथा स्वामी विवेकानंद आते हैं इन्होंने पूरी दुनिया को 19वीं और 20वीं शताब्दी में विश्व की एकता के पल के रूप में बांधकर रखने की प्रयास किया। तथा बाहरी संसार की गहरी रूचि का प्रदर्शन किया। कांग्रेस के आरंभ के नेताओं , Dadabhai Nauroji, सुरेंद्रनाथ बनर्जी तथा गृह तथा गोपाल कृष्ण गोखले को यूरोपीय इतिहास और राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन से मिली प्रेरणा के कारण भारत का निरंतर उन्होंने ब्रिटेन के साथ घनिष्ठ सहयोग मैं देखा।
जैसे जैसे आधुनिक शोधकर्ताओं ने भारत के प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डाला , इसका ज्ञान भी फैला के भारतीय लोकतक झील पूर्वी एशिया में प्रवासी रूप में गए थे और वहां कई राज्यों का स्थापना की थी वहां भारतीय संस्कृति का विस्तार हुआ विश्व विशेषता हिंदू और बौद्ध धर्म और उसके संबंधित विभिन्न कलाकृति का इन देशों में प्रसार हुआ। इसके अलावा बौद्ध धर्म मध्य एशिया के पद और चीन तक पहुंच गया. इसके कारण भारत के हिंदू जाति के मन में भारत के दक्षिण पूर्वी और उत्तरी के पड़ोसी जातियों के प्रति भाई तत्व की भावना जागने लगी।
एक अन्य कारण और ऐतिहासिक तथा भारत का एक चौथाई जनसंख्या मुस्लिम समुदाय के थे। बहुत ही कम जनसंख्या के साथ उन्होंने विदेश से आए हुए थे। और जो से वह उन्होंने भी हिंदू और बहुत से धर्म परिवर्तन ऐसे जाति के साथ मिश्रित Ho Gaye।
किंतु धर्म बंधन एक मजबूत बंधन होता है जो इन मुसलमानों को अपने पिता और विशेषता का aabhas नहीं कराता था. बल्कि मध्य पूर्व के इस्लामी देशों के साथ बंधुता का भावना को भी उस उत्साह था। और कारणों से भारतीय मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से अलग रहे हां लग रहे। इस पृथक वादी मनोवृति ने 1906 मुस्लिम लिंग की स्थापना का कारण बना। और अंततः 1947 में भारत का विभाजन का भी कारण बना।
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