ब्रिटिश संविधान की विशेषता – university notes

संविधान प्रपत्रों के उस समूह को कहते हैं जिसमें उन विधियों का संग्रह होता है जिसके अनुसार उस देश का संविधान चलाया जाता है। दूसरे अर्थ में अर्थात व्यवहारिक अर्थ में संविधान लिखित विधियों तथा नियमों के अतिरिक्त उल्लिखित आचार विचार के नियमों रीति-रिवाजों अथवा लोक प्रथाएं एवं परंपराओं के समूह को कहते हैं जिनका कहीं संग्रह नहीं होता और ना जिन्हें न्यायालय  विधियों के रूप में स्वीकार करते हैं परंतु यह देश के शासन व्यवस्था में आधारभूत होते हैं। इसी प्रकार का संविधान ब्रिटेन में ( constitution of britain ) लागू है। यहां के संविधान का निर्माण किसी एक निश्चित समय में किसी निश्चित सभा अथवा समिति द्वारा नहीं हुआ है बल्कि यह नियमों विधियों न्यायालयों और निर्णयों रीति-रिवाजों तथा परंपराओं पर आधारित है।

संविधान का स्रोत

1). ऐतिहासिक घोषणापत्र – 1215 का मैग्रचार्ट , 1628 का अधिकारों का आवेदनपत्र , 1688 का अधिकार पत्र
2). पार्लियामेंट द्वारा पारित कानून -1701,1832,1867,1919,1953,1959,1963 इत्यादि
3). सम्राट के राजधिकार
4). न्यायालयों का निर्णय
5).प्रथा – परंपरा
6). विद्वानों , न्याय शास्त्रियों तथा विख्याताओं का ग्रंथ
7). टिकाएं
8). सामान्य विधि
ब्रिटिश संविधान की विशेषता

1). परिवर्तनशील

ब्रिटिश संविधान साधारण कानूनों को ही नहीं बल्कि उस कानून को भी आसानी से रद्द कर सकती है जिनका संवैधानिक महत्व होता है । यह अपनी इच्छा अनुसार निर्मित तथा स्थगित करत है इसके लिए उन्हें किसी विशेष प्रक्रिया के तहत नहीं गुजरना होता है। इन्हीं गुणों के कारण इस संविधान को लचीला अर्थात परिवर्तनशील कहते हैं।
2).विकसित तथा विकाशील 

ब्रिटिश संविधान लंबे विकास यात्रा का परिणाम है इसे किसी संविधान सभा ने तैयार नहीं किया है। यह लंबे विकास यात्रा का फल है ।इसके विकास में सैकड़ों वर्षो का समय लगा। समय , हालात निरंकुश राजतंत्र की चुनौतियों से होता हुआ अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त हुआ है। यहां पर किसी प्रकार की क्रांति , रक्तपात हुए बिना ही शांतिपूर्ण परिवर्तन से राजतंत्र का स्थान लोकतंत्र ने लिया है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ब्रिटेन का संविधान विकासशील के साथ-साथ विकसित भी है।
3).सिद्धांत एवम व्यवहार में अंतर

ब्रिटेन के संविधान की यह विशेषता है कि वहां सिद्धांत एवं व्यवहार में व्यापक अंतर पाया जाता है । इसके सिद्धांत एवं व्यवहार के अंतर को हमने निम्न प्रकार देख सकते हैं 
1- सैद्धांतिक रूप से आज भी वहां राजतंत्र है किंतु व्यवहार में वास्तविक लोकतंत्र है।
2- सिद्धांत में संसद कैबिनेट पर नियंत्रण रखती है परंतु व्यवहार में कैबिनेट ही संसद को नियंत्रित करती है।
3- सिद्धांत में व्यवस्थापिका , कार्यपालिका अलग उद्देश्य के लिए है। परंतु व्यवहार में कार्यपालिका का जन्म व्यवस्थापिका से हुआ है और वह घनिष्ठता से जुड़ी हुई है। इसी अर्थ में एक लेखक लिखता है “इंग्लैंड में कोई भी व्यवस्था जैसी दिखती है होती है वैसी है नहीं और जैसी है वैसी प्रतीत नहीं होती”
4).पार्लियामेंट की सर्वोपरिता

ब्रिटेन में संसदीय सर्वोच्चता है। वहां संसद का स्थान सबसे ऊपर है। वह एकमात्र निर्मात्रि संस्था है। वह साधारण बहुमत से ही किसी कानून को परिवर्तित कर सकती है। उसके द्वारा निर्मित कानून को कहीं भी चुनौती नहीं दी जा सकती है। वहां पर भारत एवं अमेरिका की तरह न्यायायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था नहीं है। यही कारण है कि एक प्रसिद्ध अंग्रेजी प्रचारक डी लोम ने लिखा था कि ” संसद स्त्री को पुरुष एवं पुरुष को स्त्री बनाने के अलावा कुछ भी कर सकती है ” ।
संसद की सर्वोच्च स्थिति को व्यवहार में लोकमत परंपराओं से मर्यादित होना होता है ।अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानून भी उसे मर्यादित करता है। वैधानिक दृष्टि से पार्लियामेंट सर्वोपरि है। न वह जनसत से सीमित है,न अंतरराष्ट्रीय नियमावली से और ना ही नैतिकता के नियमों से
5)धर्मनिरपेक्ष संविधान नहीं

ब्रिटिश संविधान धर्मनिरपेक्ष संविधान नहीं है। यह सत्य है कि ब्रिटेन में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है। किसी भी धर्म का व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है। परंतु साथ ही यह भी आवश्यक है कि उसका राजा अथवा रानी प्रोटेस्टेंट ही होगा।
6).मिश्रित संविधान

ब्रिटिश संविधान में शासन व्यवस्थाओं के तीनो रूप राजतंत्र, कुलीन तंत्र और प्रजातंत्र देखने को मिलता है। ब्रिटेन में राजतंत्र का प्रतीक राजा , कुलीन तंत्र का प्रतीक संसद का उच्च सदन लॉर्ड सभा और
प्रजा तंत्र का प्रतीक वहां की कॉमन सभा और मंत्रिमंडल है। राजतंत्र,प्रजातंत्र,था कुलिनतंत्र की मिश्रित व्यवस्था ब्रिटिश शासन प्रणाली को अनोखा रूप प्रदान करती है।
7). एकात्मक शासन

ब्रिटेन में एकात्मक शासन पद्धति अपनाई गई है। संविधान के द्वारा शासन की समस्त शक्तियां केंद्रीय सरकार में निहित कर दी गई है। ब्रिटेन की केंद्रीय सरकार देश का शासन चलाती है। केंद्रीय सरकार ने प्रशासन की सुविधा के लिए स्थानीय प्रशासन की इकाइयों की स्थापना की है। स्थानीय प्रशासन की इकाइयों को प्राप्त शक्तियां भी प्रदान की गई है। परंतु प्रशासन की एक विशेषता यह है कि इकाइयां अपनी शक्ति संधान सेना लेकर केंद्रीय सरकार से प्राप्त करती है। इस प्रकार प्रशासनिक इकाइयां अपने अस्तित्व के लिए केंद्र सरकार पर आश्रित रहती है।
8).संसादात्मक प्रजातंत्र

ब्रिटेन में संसदीय प्रजातंत्र है। वास्तव में ब्रिटिश शासन व्यवस्था संसदात्मक लोकतंत्र का एक आदर्श नमूना है पुलिस टॉप इसमें संसदात्मक शासन में 3 लक्षण देखे जा सकते हैं। पहला दोहरी कार्यपालिका दूसरा व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका में घनिष्ठ संबंध तथा तीसरा कार्यपालिका का अनिश्चित कार्यकाल।
ब्रिटेन का सम्राट कार्यपालिका का नाम मात्र का प्रधान होता है। ब्रिटेन का वास्तविक प्रधान वहां का प्रधानमंत्री तथा मंत्रिमंडल होता है। कार्यपालिका व्यवस्थापिका में से ही ली जाती है। कार्यपालिका के सदस्य कानून का निर्माण करते हैं। स्पष्ट है कि जहां संसद कानून बनाते हैं वही शासन पर भी नियंत्रित रखती है ।इस प्रकार कहा जा सकता है कि इंग्लैंड में प्रजातंत्र है।
9).विधि का शासन

यह ब्रिटिश संविधान का मूलभूत सिद्धांत है। “विधि के शासन” का आशय यह है कि इंग्लैंड के शासन का संचालन किन्हीं विशेष व्यक्तियों द्वारा नहीं बल्कि विधि के द्वारा ही किया जाता है जिस पर अंग्रेज बहुत गर्व करते हैं। डीसी ने विधि के शासन के बारे में कहा है कि “विधि के शासन के अनुसार प्रत्येक सरकारी कर्मचारी , प्रधानमंत्री से लेकर एक सामान्य सिपाही और कर संग्रह करने वाले अधिकारी तक अपने अवैध कार्यों के लिए उसी प्रकार उत्तरदायी है जैसे कोई सामान्य नागरिक”
 इस संविधान में विधि का शासन नागरिकों की स्वतंत्रता का प्रतीक है इसे भी जनता ने शताब्दियों के संघर्ष के उपरांत प्राप्त किया है।
यहां हमने ब्रिटिश संविधान की विशेषता के बारे में चर्चा की है। आप  ब्रिटिश संविधान की विशेषताओं का उत्तर अपने उत्तरपुस्तिका पर लिख सकते हैं।इससे संबंधित प्रश्न हो सकते हैं
1). ब्रिटिश संविधान की विशेषताओं का वर्णन करें
2). ब्रिटेन का संविधान लचीला है , कैसे ?
3). ब्रिटेन का संविधान

Britain ka samvidhan , british samvidhan ki visheshta

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